Sunday, December 25, 2016

A Ghazal by Zafar

A beautiful Ghazal of Bahadur Shah Zafar, who lived in the times of Ghalib, partly rendered by Bhupinder with almost no music.



या मुझे अफसर-ए-शाहाना बनाया होता
या मेरा ताज गदायाना बनाया होता।

(अफसर-ए-शाहाना = king of kings, गदायाना = that of a beggar/hermit)

अपना दीवाना बनाया होता तू ने
क्यों ख़िरद-मंद बनाया? ना बनाया होता।

(ख़िरद-मंद = wise)

ख़ाक़सारी के लिए गरचे बनाया था मुझे
काश संगे-दरे-जानाना बनाया होता।

(ख़ाक़सारी = to be humiliated as dust, गरचे = if, संगे-दरे-जानाना = next to the door of my beloved)

नशा-ए-इश्क़ का गर ज़र्फ़ दिया था मुझको
उम्र का तंग न पैमाना बनाया होता।

(गर = अगर/if, ज़र्फ़ = ability to bear)

दिले-सद-चक बनाया तो बला से लेकिन
ज़ुल्फ़-ए-मुश्किन का तेरे शाना बनाया होता।

(दिले-सद-चक = a heart torn a hundred times, ज़ुल्फ़-ए-मुश्किन = fragrant hair, शाना = shoulder)

सूफियों के ना था लायक-ए-सोहबत तो मुझे
क़ाबिले-जलसा-ए-रिन्दाना बनाया होता।

(क़ाबिले-जलसा-ए-रिन्दाना = able to enjoy drunken orgies)

था जलाना ही अगर दूरी-ए-साक़ी से मुझे
तो चराग़े-दर-ए-मयख़ाना बनाया होता।

रोज़ मामूरा-ए-दुनिया में खराबी है 'ज़फर'
ऐसी बस्ती से तो वीराना बनाया होता।

(मामूरा = mundane, मामूरा-ए-दुनिया = day-to-day life)

या मुझे अफसर-ए-शाहाना बनाया होता
या मेरा ताज गदायाना बनाया होता।

1 comment:

Arun Kumar said...

I never listened to this one but it reminded me of "ae khuda ret ke sehra ko"