Tuesday, June 30, 2009

रात के मुसाफिर

The lyrics of the end titles song from Gulaal, a 2009 Hindi film:

ओ रात के मुसाफिर
तू भागना संभलके
पोटली में तेरी हो आग ना
... संभलके

चल तो तू पड़ा है
फासला बड़ा है
जान ले अंधेरे के सर पे खून चढा है

मुकाम खोज ले तू
मकान खोज ले तू
इन्सान के शहर में इन्सान खोज ले तू

देख तेरी ठोकर से
राह का वो पत्थर

माथे पे तेरे कसके लग जाए ना
... उछलके

ओ रात के मुसाफिर
तू भागना संभलके
पोटली में तेरी हो आग ना
... संभलके

माना कि जो हुआ है
वो तूने भी किया है

इन्हों ने भी किया है
उन्हों ने भी किया है

माना कि तूने ... हाँ हाँ
चाहा नहीं था लेकिन
तू जानता नहीं कि ये कैसे हो गया है

लेकिन तू फिर भी सुन ले
नहीं सुनेगा कोई

तुझे ये सारी दुनिया खा जायेगी
...निगल के

ओ रात के मुसाफिर ...

2 comments:

Harmanjit Singh said...

The song can be heard at:

http://phulki.com/p/song/hindi/gulaal/raat+ke+musafir/MisJeiBpWQc

Surbhi said...

A very good film...allow me to quote from Muktibodh's poem : 'chand ka muh tedha hai':

तसवीरें बनाने की

इच्छा अभी बाक़ी है--

ज़िन्दगी भूरी ही नहीं, वह ख़ाकी है ।

ज़माने ने नगर के कन्धे पर हाथ रख

कह दिया साफ़-साफ़

पैरों के नखों से या डण्डे की नोक से

धरती की धूल में भी रेखाएँ खींचकर

तसवीरें बनाती हैं

बशर्ते कि ज़िन्दगी के चित्र-सी

बनाने का चाव हो

श्रद्धा हो, भाव हो ।

the entire poem is available at:
(http://www.kavitakosh.org)